पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के जन्म दिन पर जुलूसे मुहम्मदी सल्लल्लाहुअलैहे वसल्लम निकालते वक्त इन बातों का खास ख्याल रखें
निसार तेरी चहल पहल पर हजारों ईदे रबी उल अव्वल।
सिवाए इब्लीस के जहां में सभी तो खुशियां मना रहे हैं ।।
शेखर खान शहडोल
अल्लाह ताला का बे पाया करम व एहसान है के उसने अपने बंदों की हिदायत व रहनुमाई के लिए बे शुमार अंबियाए केराम को इस खाक दाने गीती में पैदा फ़रमाया। एक वक्त आया के दुनिया। में बेहयाई आम हो गई , बच्चियों को जिंदा दर गोर कर दिया जाता, बेवाओं को मनहूस समझा जाता , बेहयाई का दौर दौरा था, इंसानियत का नामो निशान नहीं था इंसान एक दूसरे से बेजार थे ।ऐसे आलम में अल्लाह ने अपने महबूब दानाये गुयूब रहमते आलम ,नूरे मुजस्सम,फखरे बनी आदम,दोनो आलम के ताजदार , हम गरीबों के गमगुसार, फकीरों के मसीहा , नबियों के नबी , सय्यदुल अंबिया, खातीमुल अंबिया, सरदारे अंबिया हुज़ूर अहमदे मुस्तफा मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम को मबउस फरमा कर उम्मते मुस्लिमा पर खास एहसान फरमाया कुरआने करीम का इरशाद जो इस बात पर शाहिदे अदल है । (अल कुरआन) बेशक अल्लाह का बडा एहसान हुआ मुसलमानो पर के उनमें उन्हीं में से एक रसूल भेजा जो उन पर उनकी आयतें पढ़ता है और उन्हें पाक करता और उन्हें किताबों हिक्मत सिखाता है। और वो ज़रूर इस से पहले खुली गुमराही में थे। जब अल्लाह का इतना बड़ा एहसान मोमिनीन पर हुआ है इसी लिए जब माहे रबीउल अव्वल शरीफ का बा बरकत महीना अपनी रअनाइयों के साथ जलवा फिगन होता है,तो आशिकों के दिल मचलने लगते हैं,ये में मुबारक दिल की कली खिला देता है , मोमिनीन के चेहरे खिल जाते हैं ।, दिल जगमगाने लगता है , सिर्फ दिल ही नहीं बल्के इस मुबारक महीने में के जिसमे आकाए दो आलम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने अपने नूर से पूरी दुनियां को मुनव्वर फरमा दिया ।, इस लिए आशिकाने मुस्तफा अपने अपने घरों को सजाते हैं रौशन और मुनव्वर करते हैं । झंडे लगाते हैं । खुशियां मनाते हैं ।और क्यों न हो के शबे विलादत ये चीजें खुद अल्लाह ताला की तरफ से की गई थी। आपकी वालिदा मजिदा सय्यदा तैयबा ताहिरा आमिना रदीयल्लाहु ताला अन्हा फरमाती है। विलादत के वक्त ऐसी रौशनी फैली के शाम के मोहल्लात मैंने मक्का शरीफ से मोलाहजा फरमा लिया । और बहुत से ऐसी चीज़ें मैं ने देखी जो इस से पहले कभी नहीं देखा था। उन्हीं में से ये भी है के उस शब आप ने देखा के तीन झंडे नसब किए गए हैं ,एक मशरिक में, दूसरा मगरिब में , और एक काबा शरीफ पर।
रुहुल अमीन ने गाड़ा काबे छत पे झंडा ।
ता अर्श उड़ा सुबह शबे विलादत।।
अल्लामा जरकानी अलैहिर्रहमा इस रिवायत की शरह में लिखते हैं के इसमें इस बात की तरफ इशारा है के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की शरीअत मशरिको ,मगरिब यानी पूरी दुनियां में आम होगी। हदीसे पाक में है हुज़ूर खुद फरमाते हैं के मुझे सारी मखलूक की तरफ मबऊस किया गया ।
'' अल्लाह ताला फरमाता है : हमने तुम्हें सारे जहां के लिए रहमत बना कर ही भेजा है,,
इस लिए हमें चाहिए के हम अपने आका के 1500 साला जश्ने विलादत बा सअदत के मुबारक मौके पर अपने नबी की सुन्नतों को जिंदा करने का संकल्प ले । और अपने घरों , मसाजिद, शहर , गांव, मोहल्लों, को सजाए । इस लिए के जश्ने ईद मिलादुन्नबी करने से तमाम परेशानियां, बालाएं और आम बीमारियां दूर हो जाती है। अपने घरों में हरा झंडा लगाएं। रबी उल अव्वल शरीफ में झंडा लगाना फरिश्तों के सरदार हज़रते जिब्राइल अमीन की सुन्नते मुबारका है साथ ही गरीबों, यतीमों, मिस्कीनो, बेवाओं, हाजत मंदों की हाजत पूरी करना रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की सुन्नते मुबारका है । सरकार का फरमाने आली शान है के दान करने से माल में कमी नहीं आता । अपने आका हुज़ूर अलैहिस्सलाम की आमद पर सबील लगाना बाइस नेमत और सवाब के काम है। मगर इन तमाम कामों को इस अंदाज में करें के रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहे की सुन्नत अदा हो । क्यों के हमारे यहां लंगर करने का तरीक़ा कुछ इस तरह है खाने पीने की चीजें फेक कर देना और खड़े हो कर खाना ये तरीक़ा सरा सर शरीयत और सुन्नत के खिलाफ है ऐसे कामों से अल्लाह के रसूल यकीनन नाराज़ होते हैं और अल्लाह भी नाराज़ होता है । खाने पीने की चीजों को बैठ कर खाएं।इन तमाम कामों को सुन्नत के मुताबिक करें । ता के हम सब के लिए बाइसे बरकत और रहमत का सबब बने। कसरत से दुरूदे पाक का का विर्द करें। जुलूस में चले तो सादगी,इस्लामी लिबास , सर पर अमामा या टोपी के साथ बा वुज़ू दुरुदे पाक, कालिमए तैय्यबा, हो सके तो अपने हाथों में हरा झंडा रखे ,नात शरीफ पढ़ते हुए चलें। लड़ाई, झगड़ा, फोहश गोई ,आतिशबाज़ी, डी. जे. खूब तेज आवाज़ में न बजाए जिससे दूसरों को तकलीफ पहुंचे ऐसे कामों से अपने आप को कोशों दूर रखे। क्योंकि जिस मजहब को हैं मानते है वो हमे इन तमाम चीजों का हरगिज हुकम नही देता हैं । मजहबे इस्लाम अमन और शांति का पैगाम देता है। अमन और शान्ति के साथ जूलूस में चलें। इस्लाम कभी भी दहशत गर्दी का पैगाम नही देता। बल्के अमन ,शांति , मोहब्बत और भाई चारे का पैग़ाम देता है। हम सब मुसलमानो को चाहिए के अपने आका हुज़ूर अलैहिस्सलाम का जश्न इस तरह मनाएं के देखने वाले भी कहने पर मजबूर हो जाए के ये हैं सच्चे आशिक़ रसूल हैं। अपने मोहसिन का इस तरह जश्न मनाते हैं। इन तमाम बातों का खास ख्याल रखा जाए ।अल्लाह ताला हमें सच्चे आशिके रसूल और मोहिब्बे रसूल बनाए।अल्लाह ताला इस 1500 साला जश्ने ईद मिलादुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम को हमारे लिए बाइसे बरकतो रहमत और बखशिश का ज़रिए बनाए।
मोहम्मद तौफीक अहमद मिस्बाही
मस्जिद ख्वाजा गरीब नवाज़
बस स्टैंड शहडोल एम. पी.


0 Comments