ईद और मुसलमानों की जिम्मेदारियां
मौलाना मोहम्मद तौफीक अहमद मिस्बाही शहडोल
अलविदा - अलविदा माहे रमज़ान
अलविदा - अलविदा माहे गुफरान
आम तौर पर हर धर्म में खुशियां मनाने और जाहिर करने के लिए कुछ खास दिन होते हैं जो किसी महत्वपूर्ण घटना या शख्सियत से जुड़े होते हैं तो इन खुशियों को मनाने के तरीके भी सबके अलग-अलग होते हैं, क्योंकि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के आने के बाद इस्लाम अल्लाह तबारक वा ताआला का सबसे प्रमुख और पसंदीदा धर्म है।
ईद-उल-फितर उन विभिन्न अवसरों में से एक है जो इस्लाम ने हमें जश्न मनाने के लिए प्रदान किए हैं। रमज़ान के महीने में एक उत्कृष्ट प्रशिक्षण अभ्यास के बाद, अल्लाह सर्वशक्तिमान ने इन कठिनाइयों के बदले में अपने सेवकों को यह खुशी का दिन अता फरमाया।
लेकिन इस्लाम में ख़ुशी मनाने का विचार यह नहीं है कि मेहनत से कमाया गया हलाल पैसा अनैतिक और हराम कामों में बर्बाद किया जाए और केवल ख़ुशी के नाम पर खर्च किया जाए।
ईद-उल-फितर के दिन की खुशियाँ, रहमतें और बरकतें भरपूर हैं, लेकिन इनका असली हकदार वही है जिसने रमज़ान की शर्तों को पूरा किया है और जिसने अपने दिल को इसकी रोशनी से रोशन किया है।
ईद-उल-फितर का सूरज भी मुसलमानों के लिए खुशियों के साथ उगता है। लेकिन इस दिन रोज़ा रखने वाला व्यक्ति क्या महसूस करता है, यह दूसरों को नहीं पता होता। क्योंकि अल्लाह तआला ने रोजेदारों को इनाम के तौर पर यह खुशी का दिन अता किया है।
ईद-उल-फितर का दिन, बे बांग दुहल, एलान करता है कि दूसरों को अपनी खुशियाँ अपने साथ साझा (बाटनी)करनी चाहिए। अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों, परिवार के सदस्यों, गरीबों और जरूरतमंदों का विशेष ध्यान रखें ताकि ईद-उल-फितर की आवश्यकताएं पूरी हो सकें।
अफसोस की बात है कि लोग ईद के दिन अपने परिवार का खूब ख्याल रखते हैं, लेकिन उनके आसपास कई ऐसे लोग भी होते हैं जो ईद की खुशियों से वंचित रह जाते हैं। इस ईद के दिन कई घरों में चूल्हा तक नहीं जलता, बच्चों की ईदी के लिए पैसे भी नहीं होते, इसलिए उनके फूलों जैसे बच्चे ईद के दिन नहीं खिल पाते.
ईद-उल-फितर का तकाजा है कि हम अपनी खुशियां दूसरों के साथ बांटें, गरीब और जरूरतमंद बच्चों को ईद के तोहफे दें, उपहार दें, उनके घर मिठाइयां और सेवइयां भेजें, उन्हें मुबारक बाद पेश करें ताकि वे भी ईद-उल-फितर की खुशियां मना सकें।
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना, बीमारों की अयादत करना , बच्चों के प्रति शफकत (दयालु)और नरमी का व्यवहार करना, बड़ों का सम्मान करना, नम्रता और सहनशीलता का रवैया अपनाना हमारी धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारी है।
इन जिम्मेदारियों को निभाने के परिणाम हम अपने जीवन में महसूस करेंगे।
सामूहिक रूप से नहीं तो व्यक्तिगत रूप से यदि मुसलमान इस ओर ध्यान दें तो समाज में एक बड़ी क्रांति अवश्य संभव होगी।
जिसे हर मुसलमान को याद होना चाहिए।
1. हजामत बनवाना (मगर जुल्फें से बनवाइए न के अंग्रेज़ी बाल)2. नाखून तरशवाना। 3. गूसल करना 4. मिसवाक करना 5. अच्छे कपड़े पहनना (नए हों तो नए वरना धुले हुए साफ हों) 6. खुशबू लगाना 7. अंगूठी पहनना( जब कभी अंगूठी पहनिए तो इस बात का खास खयाल रखिए के सिर्फ साढ़े चार माशा से कम वजन चांदी की एक अंगूठी पहनिए एक से ज्यादा न पहननिए
और उस एक अंगूठी में भी नगीना एक ही हो एक से ज्यादा नगीने न हों, बिना नगीने के भी मत पहनिए नगीने के वजन की कोई कैद नही है चांदी का छल्ला या चांदी के बयान करदा वजन वगैरा के अलावा किसी भी धात की अंगूठी या छल्ला मर्द नहीं पहन सकता) 8. स्थानीय मस्जिद में फज्र की नमाज पढ़ना 9. ईद की नमाज में जाने से पहले कुछ खजूर खाना, तीन, पांच, सात या अधिक या कम लेकिन ताक हों अगर खजूर न हो तो कुछ मीठा खा लें. अगर नमाज़ से पहले कुछ न खाया तो कोई गुनाह नहीं, लेकिन इशा तक न खाया तो गुनाह होगा। मलामत किया जायेगा)10. नमाज़ ईद ईदगाह में अदा करना। 11. ईदगाह पैदल जाना 12. सवारी पर भी जाने की कोई हर्ज नहीं है मगर जिसको पैदल जाने पर कुदरत या ताक़त हो तो उसके लिए पैदल जाना अफजल है और वापसी पर सवारी पर आने में हर्ज नहीं है 13. नमाज़ ईद के लिए एक रास्ते से जाना और दूसरी रास्ते से आना ,14. ईद की नमाज़ से पहले सदकए फितर अदा करना अफजल है ,15. ख़ुशी दिखाना,16. खूब दान देना, 17.ईदगाह को इत्मीनानो वकार और नीची निगाह किए जाना 18. आपस में मुबारक बाद देना 19. ईद की नमाज़ के बाद मुसाफा और मुआनका करना यानी गले मिलना , और एक-दूसरे को नीची नज़र से देखना 20 .ईद की नमाज के बाद एक-दूसरे को बधाई देना। ईद की नमाज़ के लिए जाते समय रास्ते में ऊंचे आवाज़ (स्वर) से तकबीर कहें:
'' अल्लाहु अकबर ,अल्लाहु अकबर ला इलाहा इल्लल्लाह , वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द,
मौलाना मोहम्मद तौफीक अहमद मिस्बाही
मस्जिद ख्वाजा गरीब नवाज़ शहडोल


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